नई पुस्तकें >> उत्तर भारत के मंदिर उत्तर भारत के मंदिरकृष्णदेव
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उत्तर भारत के मंदिर अपनी विशेषताओं के उत्कृष्ट प्रतीक हैं। विभिन्न तलविन्यास व ऊर्ध्वविन्यास द्वारा परिलक्षित इनकी विशेषताएं समस्त उत्तर भारत के मंदिरों में, जो कि दक्षिण में तुंगभदा घाटी तक विस्तृत हैं, पाई जाती है। आधारभूत विचार एक समान होने पर भी विभिन्न क्षेत्रों की शैलियों का विकास अपने ही ढंग से हुआ जो विकास की धारा एवं स्थानीय विशिष्टताओं, कला की परंपरा तथा राजनैतिक व सांस्कृतिक परंपराओं की देन रहीं।
प्रस्तुत पुस्तक में जहां गुप्त काल (5वीं सदी) से जेकर मध्य भारत व राजस्थान के अवशिष्ट मंदिरों, जिनका निर्माण 8वीं व 9र्वी सदी में हुआ, की विशिष्टताओं की जानकारी दी गई है, वहीं 20वीं सदी के आरंभ में मैसूर (कर्नाटक) राज्य में जिस विशिष्ट स्थापत्य शैली का प्रादुर्भाव हुआ, उसकी यात्रा के विकास के विभिन्न चरणों द्वारा स्थापत्य कला की असाधारण प्रगति व उत्कृष्ठता को दर्शाया गया है।
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